Sunday, November 4

नितिन गडकरी जी के ब्यान पर बवाल क्यों ?

आज सुबह जब मैं समाचार चैनलों को  देख रहा था तो मुझे समझ नहीं आया कि क्यों नितिन गडकरी जी के ब्यान पर बवाल मचा है| जब भी रामायण की चर्चा होती है तो भगवान राम के साथ रावण की भी चर्चा होती है| क्या रावण ताकतवर नहीं था? क्या रावण बुद्धिमान नहीं था? उसने अपनी बुद्धि का उपयोग गलत दिशा में किया| राम और रावण की चर्चा हमेशा साथ -साथ होती है एक ने अपना विवेक का उपयोग मानवता और धरती पर राम राज्य की स्थापना के लिए किया तो दूसरे ने अपनी बुद्धि का उपयोग धरती पर आतंक के लिए किया|  जब कभी भी महाभारत की चर्चा होती है तो पांडवों के साथ कौरवों की भी चर्चा होती है| क्या कौरव ताकतवर नहीं थे? क्या कौरव बुद्धिमान नहीं थे? कौरवों की सेना में जो लोग थे वो बुद्धिमान थे परन्तु पांडवों ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल धर्म की खातिर किया और कौरवों ने अधर्म की खातिर| इसका अर्थ है कि अपनी बुद्धि का इस्तेमाल सकारात्मक और नकारात्मक करना अपने  हाँथ में होता है|
नितिन गडकरी जी ने भी यही कहा कि विवेकानंद जी ने अपनी बुद्धि का उपयोग राष्ट्राहित में किया और दाउद इब्राहीम ने अपनी बुद्धि का उपयोग राष्ट्रद्रोह में किया।
वो IQ की बात कर रहे थे, अब ये IQ का मामला है कि लोग उनके इस ब्यान को किस तरह लेते हैं, परन्तु एक बात
समझ आती है कि मीडिया के भाई लोग राई को पर्वत और पर्वत को राई बना सकते हैं ।

Saturday, October 6

कांग्रेस आगे बढ़ गई और देश पीछे छुट गया !

श्री शरद जोशी जी द्वारा लिखित उनकी पुस्तक "जादू की सरकार" का आलेख " तीस साल का इतिहास " जिसे पढ़कर कांग्रेस पार्टी को समझने मे आसानी होगी कि कांग्रेस किस प्रकार का तत्व है ?

"तीस साल का इतिहास"

कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए कुछ कहते हैं , तीन सौ साल बीत गए, गलत है .सिर्फ तीस साल बीते . इन तीस सालों में कभी देश आगे बढ़ा , कभी कांग्रेस आगे बढ़ी . कभी दोनों आगे बढ़ गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए .फिर यों हुआ कि देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई. तीस सालों की यह यात्रा कांग्रेस की महायात्रा है. वह खादी भंडार से आरम्भ हुई और सचिवालय पर समाप्त हो गई.

पुरे तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही. पुरे तीस साल तक कांग्रेस ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने पढ़ा. पोस्टरों ,किताबों ,सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस का नाम लिखा रहा. रेडियो ,टीवी डाक्यूमेंट्री , सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही गूँज थी और वह कांग्रेस की थी. कांग्रेस हमारी आदत बन गई. कभी न छुटने वाली बुरी आदत. हम सब यहाँ वहां से दिल दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे. इन तीस सालों में हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समां गई.
जैसे ही आजादी मिली कांग्रेस ने यह महसूस किया कि खादी का कपड़ा मोटा, भद्दा और खुरदुरा होता है और बदन बहुत कोमल और नाजुक होता है. इसलिए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि खादी को महीन किया जाए, रेशम किया जाए, टेरेलीन किया जाए. अंग्रेजों की जेल में कांग्रेसी के साथ बहुत अत्याचार हुआ था. उन्हें पत्थर और सीमेंट की बेंचों पर सोने को मिला था. अगर आजादी के बाद अच्छी क्वालिटी की कपास का उत्पादन बढ़ाया गया, उसके गद्दे-तकिये भरे गए. और कांग्रेसी उस पर विराज कर, टिक कर देश की समस्याओं पर चिंतन करने लगे. देश में समस्याएँ बहुत थीं, कांग्रेसी भी बहुत थे.समस्याएँ बढ़ रही थीं, कांग्रेस भी बढ़ रही थी. एक दिन ऐसा आया की समस्याएं कांग्रेस हो गईं और कांग्रेस समस्या हो गई. दोनों बढ़ने लगे.
पुरे तीस साल तक देश ने यह समझने की कोशिश की कि कांग्रेस क्या है? खुद कांग्रेसी यह नहीं समझ पाया कि कांग्रेस क्या है? लोगों ने कांग्रेस को ब्रह्म की तरह नेति-नेति के तरीके से समझा. जो दाएं नहीं है वह कांग्रेस है.जो बाएँ नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य में भी नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य से बाएँ है वह कांग्रेस है. मनुष्य जितने रूपों में मिलता है, कांग्रेस उससे ज्यादा रूपों में मिलती है. कांग्रेस सर्वत्र है. हर कुर्सी पर है. हर कुर्सी के पीछे है. हर कुर्सी के सामने खड़ी है. हर सिद्धांत कांग्रेस का सिद्धांत है है. इन सभी सिद्धांतों पर कांग्रेस तीस साल तक अचल खड़ी हिलती रही.

तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा. जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं,जो बताया वह था नहीं, जो था वह गलत था. अहिंसा की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से. सत्य की नीति पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही.पेड़ लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए. राहत दी मगर टैक्स बढ़ा दिए. शराब के ठेके दिए, दारु के कारखाने खुलवाए; पर नशाबंदी का समर्थन करती रही. हिंदी की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा. योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी. लागू की तो रोक दिया. रोक दिया तो चालू नहीं की. समस्याएं उठी तो कमीशन बैठे, रिपोर्ट आई तो पढ़ा नहीं. कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है. समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया. नारा दिया तो पूरा नहीं किया. प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर को. दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई . तीस साल तक खड़ी रही. एक को बढ़ने नहीं दिया.दूसरे को घटने नहीं दिया.आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे. 'यूथ' को बढ़ावा दिया, बुड्द्धों को टिकेट दिया. जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया. जो केंद्र में बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए. जो दोनों जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया. वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा.

एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे. जातिवाद का विरोध किया, मगर अपनेवालों का हमेशा ख्याल रखा. प्रार्थनाएं सुनीं और भूल गए. आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं. जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए. मेहनत पर जोर दिया, अभिनन्दन करवाते रहे. जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे.शांति की अपील की, भाषण देते रहे. खुद कुछ किया नहीं दुसरे का होने नहीं दिया. संतुलन की इन्तहां यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर थे. दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए. तीस साल तक पुरे, पुरे तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था. संतुलन, तम्बू की तरह तनी रही,गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही बर्फ सी जमी रही पुरे तीस साल तक.
कांग्रेस अमर है. वह मर नहीं सकती. उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएँगे. जब तक पक्षपात ,निर्णयहीनता ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह , ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता. कांग्रेस कायम रहेगी. दाएं, बाएँ, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी. इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है. जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी. जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है. तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली...

Friday, August 24

भैया मोरे मैं नहीं कोयला खायो

आज का मन "मोहन" भी बड़ा नटखट है, जो माखन और मिश्री नहीं खाता,कोयला खाता है| माखन चुराने वाला मनमोहन जब माखन चुरा कर खाता तो सभी के पेट भर जाते थे परन्तु ये मन "मोहन" कुछ सहयोगी चोरों का पेट भरकर पूरे देश को भूखा रखना चाहता है| सीएजी की रिपोर्ट को मानें तो 1993 तक देश में कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर विशेष नीति नहीं थी। 1993 के बाद प्राइवेट लोगों को ब्लॉक सीधे आवंटित करने की शुरुआत की गई। 2004 से 2011 तक 194 कोयला ब्लॉक आवंटित किए जा चुके हैं। 2006 में माइंस एंड मिनरल्स एक्ट 1957 में संशोधन का बिल संसद में लाया गया और माना गया कि जब तक दोनों सदन इसे मंजूरी नहीं दे देते और यह बिल पास नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कोयला खदान आबंटित नहीं किया जायेगा, लेकिन यह बिधेयक 4 साल तक लोकसभा में लम्बित रहा और 2010 में ही यह कानून में तबदील हो गया,परन्तु संसद में किये वादे से सरकार मुकर गई और कोयला खदान बाँटने का गोरखधंधा चलता रहा | कैग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को कौड़ियों के भाव कोयला खानों का आवंटन कर दिया, जिससे सरकारी खजाने को 1 .86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। पेश रिपोर्ट के मुताबिक, कोयला ब्लॉकों को बोली की जगह नॉमिनेशन के आधार पर आवंटित किया गया। बोली की नीति लागू करने में देरी से प्राइवेट कंपनियों को फायदा हुआ। फायदा पाने वाली जिन 25 प्राइवेट कंपनियों के नाम गिनाए गए हैं, उनमें एस्सार पावर, हिन्डाल्को इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, टाटा पावर और जिंदल स्टील ऐंड पावर के नाम हैं। 2004 से 2011 तक 194 कोयला ब्लॉक आवंटित किए जा चुके हैं| 2004 में ही तय किया गया था कि कोयला ब्लॉक आवंटन में बोली लगेगी, लेकिन सरकार अभी तक इसकी प्रक्रिया नहीं तय कर पाई है। जिस समय के आवंटन को लेकर कैग ने ये तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था और राज्य स्तर के मंत्री दसरी नारायण राव और संतोष बगरोदिया उनके सहयोगी थे। उस समय के कोयला सेक्रेटरी पी. सी. पारेख ने स्वीकार किया कि कुछ खास कंपनियों को खदान आवंटित करने के लिए उन पर 'दबाव' था। पारेख ने 2004 में कोयला राज्य मंत्री राव को एक नोट पेश किया था, जिसमें पारदर्शिता के नियमों का पालन करते हुए ब्लॉक के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियों की व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव किया गया था। कितनी बिडम्बना है कोयला चोर की चोरी पकड़े जाने के बाद भी सीनाजोरी करते नजर आ रहा है और सभी सहयोगी चोर उसके साथ नजर आ रहे हैं| जनता हीं इन्हें हथकड़ी लगा पायेगी|


Friday, August 17

माना कि खबर अफवाह है, पर दहशत से इंकार नहीं

आज देश में असम में पिछले दिनों फूटी जातीय हिंसा के कारण जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं वो दुर्भाग्यपूर्ण भविष्य के लिए आशंकित कर रही है, असम की हिंसा और म्यांमार में मुस्लिमों पर जारी हमलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान मुंबई में भड़की हिंसा में पाकिस्तानी झंडे दिखाया जाना, भड़काउ टिप्पणियां और शहीदों के स्मारक को तोड़ना भविष्य को आइना दिखाने के सामान है| आज कहाँ है वो लोग जिन्हें दूसरे देश के लोगों की चिंता है और उनके लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं| आज उनके अपने ही देश में अपनों के बीच ही भय और आतंक का माहौल बना है| जहाँ बंगलौर में रह रहे उत्तर-पूर्वी राज्यों के हजारों लोग इस डर से शहर छोड़ कर भाग गए हैं कि कहीं उन पर हमला न हो जाए, वहीं हैदराबाद में असम और अन्य पूर्वोत्तर के राज्यों से आए लोगों के बीच भय व्याप्त है| मुंबई तथा पुणे में उत्तर-पूर्व राज्यों के छात्र विभिन्न स्कूलों और कालेजों में पढ़ते हैं- ज्यादातर अपने घरों को लौट रहे हैं| पिछले दो-तीन दिनों में मुझे अपने दोस्तों से मिलने का मौका मिला है तो मुझे ऐसा लगा कि उन लोगों के बीच भी देश में फैली अराजकता और कुव्यवस्था के प्रति घोर आक्रोश है| इन सभी घटनाओ के वाबजूद सत्तारूढ़ पार्टी अपने वोट बैंक पोलिटिक्स के कारण कोई भी ठोस कदम उठाने में असक्षम है, जो भारत की एकता और अखंडता को बनाये रखने के लिया अवश्यक हो, जिससे लोग भय से मुक्त हों| अब इस देश की राष्ट्र भक्त जनता और सामाजिक संगठनों को ही इन परिस्तिथियों में देश हित में आवाज उठानी होगी| आज जब मैं न्यूज़ देखा रहा था तो पता चला कि आर.एस.एस के लोग मुंबई-पुणे से जा रहे लोगों की सहायता हेतु स्टेशन पर मौजूद थे| आज देश को ऐसे लोगों की जरुरत है और इन्हीं लोगों की वजह से भारत हमारी माँ, "भारत माँ" सुरक्षित है , ऐसे राष्ट्रभक्त लोगों को सत-सत नमन|

Monday, May 14

इतने ऊँचे उठो -- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥
- द्वारिका प्रसाद महेश्वरी (Dwarika Prasad Maheshwari)

Thursday, April 5

वतन के पुजारी और कलम के पुजारी दोनों में खोंट|

कुछ दिनों से सेना-सरकार का मुद्दा अखबार और टीवी चैनलों के सुर्खियों में है| इन दोनों में कौन सही है कौन गलत यह कह पाना थोड़ा कठिन है पर जितनी मेरी समझ है कि जो हम देख रहे है और सुन रहे है, वो हमें दिखाया और सुनाया जा रहा है जो कि वास्तविकता पर हावी होता तो दिख रहा है परन्तु ये लम्बे समय तक संभव नहीं| मुझे एक बात समझ नहीं आती कि अगर सेना किसी गलत मनसूबे को सुनिश्चित कर के दिल्ली की तरफ आती तो सरकार के आदेश के बाद वापस क्यों जाती? जनरल वी.के. सिंह का उम्र विवाद , उसके बाद जनरल को घूस की पेसकस के खुलासे तथा मीडिया के माध्यम से सेना के मसूबे पर प्रशन चिन्ह, सभी बाते कहीं दूसरी तरफ इशारा करती है| 16-17 जनवरी की रात कथित तौर पर सेना की दो टुकड़ियों के दिल्ली की ओर आने से केंद्र सरकार में मची खलबली की खबर के मास्टर माइंड सरकार में ही शामिल एक मंत्री हैं। अंग्रेजी अखबार 'द संडे गार्जियन' ने सूत्रों के हवाले से यह दावा किया है| अखबार ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि मंत्री अपने करीबी रिश्तेदार के जरिए रक्षा से जुड़े सामानों की खरीद फरोख्त करने वाली लॉबी से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये लॉबी सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह के खिलाफ है। रिपोर्ट में कहा गया है, '४ अप्रैल को छपी खबर के पीछे भी यही मंत्री है। मंत्री को उम्मीद थी कि खबर छपने के बाद राजनीतिक बिरादरी जनरल वी के सिंह के खिलाफ हो जाएगी। साथ ही खबर से यह उम्मीद भी थी कि राजनीतिक बिरादरी पाकिस्तान जैसे हालात बनने की आशंका को देखते हुए एकजुट हो जाएंगे। मीडिया के माध्यम से प्राप्त सभी जानकारी से ये तो समझ आता है कि वतन के पुजारी और कलम के पुजारी दोनों में खोंट है और वो दो पंक्तियाँ याद आती है ..

"धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे
कलम के पुजारी अगर सो गए तो,
वतन के पुजारी वतन बेच देंगे|"

ये दोनों पुजारी इस देश की जनता जो महा पुजारी है उसे मूर्ख बनाने में लगें है परन्तु ये संभव नहीं है क्योकि महा पुजारी तो स्वेम्भु है, त्रिकालदर्शी है उसे सब पता है|

Friday, March 30

Why team Anna is blaming on parliamentarians?

Why team Anna is blaming on parliamentarians because they are elected by people. "Their motto should not change the face of parliament or country.This will be changed by people's unity. Their motto should be to change the mindset of people".

Monday, March 5

क्या राहुल जादूगर है कि उनका जादू चलेगा?

टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल के नतीजों को देख रहा था| कुछ चैनल चला रहे थे कि क्या राहुल गाँधी का जादू उत्तर प्रदेश में नहीं चला? मुझे एक बात समझ नहीं आती कि क्या राहुल जादूगर है कि उनका जादू चलेगा | जिस तरीके से उत्तरप्रदेश में भाजपा, सपा, बसपा एवं अन्य पार्टीयों ने चुनाव प्रचार करके जनता के बीच अपनी बातों और उपलब्धिओं को रखा, उसी तरह कांग्रेस ने भी अपना प्रचार किया| लोकतंत्र में जनता परीक्षक के समान है और सभी पार्टी एक परीक्षार्थी के समान है जिसमे परीक्षक सही मुल्यांकन कर परीक्षार्थी को उत्तीर्ण करता है| कोई परीक्षार्थी जादूगर नहीं होता कि बिना पढाई किये अपना जादू दिखा कर पास हो जाये|लोकतंत्र में जनता ने अपने खराब विद्यर्थी को फेल किया है तो इसमें जादू का कोई सवाल हीं नहीं उठता|