Thursday, April 5

वतन के पुजारी और कलम के पुजारी दोनों में खोंट|

कुछ दिनों से सेना-सरकार का मुद्दा अखबार और टीवी चैनलों के सुर्खियों में है| इन दोनों में कौन सही है कौन गलत यह कह पाना थोड़ा कठिन है पर जितनी मेरी समझ है कि जो हम देख रहे है और सुन रहे है, वो हमें दिखाया और सुनाया जा रहा है जो कि वास्तविकता पर हावी होता तो दिख रहा है परन्तु ये लम्बे समय तक संभव नहीं| मुझे एक बात समझ नहीं आती कि अगर सेना किसी गलत मनसूबे को सुनिश्चित कर के दिल्ली की तरफ आती तो सरकार के आदेश के बाद वापस क्यों जाती? जनरल वी.के. सिंह का उम्र विवाद , उसके बाद जनरल को घूस की पेसकस के खुलासे तथा मीडिया के माध्यम से सेना के मसूबे पर प्रशन चिन्ह, सभी बाते कहीं दूसरी तरफ इशारा करती है| 16-17 जनवरी की रात कथित तौर पर सेना की दो टुकड़ियों के दिल्ली की ओर आने से केंद्र सरकार में मची खलबली की खबर के मास्टर माइंड सरकार में ही शामिल एक मंत्री हैं। अंग्रेजी अखबार 'द संडे गार्जियन' ने सूत्रों के हवाले से यह दावा किया है| अखबार ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि मंत्री अपने करीबी रिश्तेदार के जरिए रक्षा से जुड़े सामानों की खरीद फरोख्त करने वाली लॉबी से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये लॉबी सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह के खिलाफ है। रिपोर्ट में कहा गया है, '४ अप्रैल को छपी खबर के पीछे भी यही मंत्री है। मंत्री को उम्मीद थी कि खबर छपने के बाद राजनीतिक बिरादरी जनरल वी के सिंह के खिलाफ हो जाएगी। साथ ही खबर से यह उम्मीद भी थी कि राजनीतिक बिरादरी पाकिस्तान जैसे हालात बनने की आशंका को देखते हुए एकजुट हो जाएंगे। मीडिया के माध्यम से प्राप्त सभी जानकारी से ये तो समझ आता है कि वतन के पुजारी और कलम के पुजारी दोनों में खोंट है और वो दो पंक्तियाँ याद आती है ..

"धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे
कलम के पुजारी अगर सो गए तो,
वतन के पुजारी वतन बेच देंगे|"

ये दोनों पुजारी इस देश की जनता जो महा पुजारी है उसे मूर्ख बनाने में लगें है परन्तु ये संभव नहीं है क्योकि महा पुजारी तो स्वेम्भु है, त्रिकालदर्शी है उसे सब पता है|