संजय दत्त पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर आज जो बहस चल रही हैं उससे
एक बात तो समझ मे आती हैं कि हम सब वैचारिक रूप से दिवालियापन की ओर
अग्रसर हैं| जब सारे तथ्य स्पष्ट हैं इसके बावजूद संजय के माफ़ी की गुहार
लगाई जा रही हैं तो यह वैचारिक दिवालियापन नहीं हैं तो क्या हैं? मैं संजय
दत्त की फिल्मो को बचपन से देखता आ रहा हूँ, वो मेरे पसंददीदा अभिनेता
हैं| अगर संजय दत्त को माफ़ी हुई, तो बात तो वही हैं " मुझे एक बार गुनाह कर
लेने दो, क्योंकि ये मेरा पहला गुनाह हैं फिर मैं सुधर जाऊगा और
देश मुझे माफ़ कर देगा " क्या यही युवाओं का आदर्श बनेगा ?
कुछ लोगो की दलील हैं की संजय दत्त शादीशुदा हैं उनके
बच्चे हैं, पर उनका क्या जिनके पति, पिता और परिजन घर लोटकर ही नहीं आये,
किसी ने भी उन लोगो के न्याय की बात नहीं की लेकिन संजय के प्रति लोगो को
संवेदना हैं| जिस देश ने महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह जैसे
लोगो को आदर्श बनाया हैं क्या वे आज संजय दत्त को आदर्श के रूप में प्रकट
करना चाहते हैं| मैं मानता हूँ कि न्यायिक प्रक्रिया मे सुधार होना चाहिए,
फैसला जल्द होना चाहिए लेकिन गुनाहगार को माफ़ी नहीं होनी चाहिए।
आज जो लोग देश में सख्त कानून बनाने की बात कर रहे हैं वही सुप्रीम
कोर्ट के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं शायद वो लोग चाहते हैं कि
देश में दो कानून हो एक वो जो साधारण लोगो के लिए हो, जिसमें केवल सजा का
प्रावधान हो, जिसमें बेगुनाहों की चीख भी सुनी न जा सके और दूसरा कानून वो
जो देश के बड़े लोगो के लिए हो जिनके गुनाहों के बावजूद, उनके चेहरे की
शिकन तक को नज़र अंदाज़ न किया जा सके|
"रील की मदर इंडिया" में बेटे को परिस्थियों
ने अपराधी बनाया इसके बावजूद उस की माँ ने उस को सजा दी थी संजय को
परिस्थियों ने मजबूर नहीं किया था, फिर "रियल मदर इंडिया" से माफ़ी की उम्मीद क्यों ?
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